समग्रता, सम्यक् स्वास्थ्य, तत्परता, कृतज्ञता

मेरे सभी पाठक , सहकर्मी एंव मित्र और मैं स्वयं उपरोक्त सभी शब्दों को काफी लम्बे समय से सुनते एवं देखते आ रहे हैं परन्तु शायद अनुसरण और अनुभव के विषय में कभी नहीं विचार किया।

गये दशक में मुझे कुछ महत्वपूर्ण अनुभव, अनुभूति हुई समय समय पर जो मेरे हृदय उदगार में प्रस्फुटित हुई। ये आशा है कि आप सब भी इनको अनुभव करें।

समग्रता, सम्यक् स्वास्थ्य, तत्परता, कृतज्ञता

समग्रता

  • आश्चर्य ….हमारा शरीर उन्हीं पांच तत्वों से बना है जो प्रकृति  में और सभी दूसरी वस्तुओं में व्याप्त हैं। हम सब स्वयं प्रकृति हैं। हमारा खान पान, कपड़ा भी प्रकृति प्रदत्त है। इसलिए प्रकृति के साथ एकाकार होकर रहना आवश्यक है। धरती यानी इस जानकार ब्रह्माण्ड यानी ईश्वर जो अनंत को शून्य और शून्य को अनंत करता है उससे एकाकार रखना आवश्यक है। ध्यान दें।
  • प्रकृति के साथ एकाकार या वृहद रूप में ब्रहंमाड के साथ एकाकार होना ही चाहिए। ये एकाकार ही इस प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण को बचाने का रास्ता है।
  • कृपया अपने चारो तरफ द्रष्टि डालिये, ये प्रकृति बिना कुछ ताकत लगाऐ अपना कार्य करती रहती है। एक कली ,फूल में बदल जाती है चुप चाप सही समय पर। ये ब्रहमाण्ड  समावेशित है असमावेशित नहीं। ध्यान दें ….
  • प्रकृति ( ब्रहमाण्ड) के पंच तत्व ही हमारे शरीर का आधार है।शरीर में ७५ प्रतिशत तो केवल जल ही है। अर्थात हम अपने -घर प्रकृति से ही आते हैं। ये ब्रहमाण्ड समावेशित है। हमारी समग्रता प्रकृति से एकाकार में ही है।
  • एक सूक्ष्म कण की विशेषताऐं वही होती जो उसके मूल की हैं बिलकुल वैसे ही जैसे हम और ये ब्रहमाण्ड । इसलिए हम समग्र हैं।
  • हमने ईश्वर को देखा नही, फिर भी पूर्ण विश्वास करते हैं,महसूस करते हैं। इसी तरह सर्व ज्ञानी ब्रहमाण्ड में प्रकृति की शांति है उससे एकाकार हों……जो हमें समग्र बनाती है। हम समग्र हैं।
  • हमारी आकाश गंगा में स्थित सूर्य सभी प्राणीयों को उष्मा, उर्जा,प्रकाश प्रदान करता है। बाकी सब पृथ्वी प्रदान करती है तो कमी कंहा है….हम समग्र हैं।
  • सब कुछ नगण्य सा है इस ब्रहमाण्ड में परन्तु ये सब सापेक्षता है। विज्ञान ब्रहमाण्डो में और ब्रहमाण्ड खोज रहा है। नगण्य भी सदैव है और मूल से तारतम्य बनाये हुए है। हम समग्र हैं।
  • जल में तरंग उठती है और जल ही उसका वाहक होता है। जल ही तरंग है और तरंग ही जल है–वास्तविकता में न जल, न तरंग है केवल सर्वव्यापी संचालक है। हम समग्र हैं।
  • ये दृश्य जगत,अनंत अदृश्य जगत उस सच्चिदानंद घन परिपूर्ण स्वामी के सूक्ष्म से भाग में उपस्थित है जो स्वंय परिपूर्ण है।हम सब उस सूक्ष्म परिपूर्णता से आते हैं…हम समग्र हैं। ..ईशावास्योपनिषद
  • “ध्यानार्थ …जिस स्वयंभू चेतना ने ये द्रश्य बृहंमाड बनाया है उस ही ने हम सब को बनाया है।उस समग्र का सूक्ष्मतम कण भी समग्र ही है …इस लिए हम समग्र हैं।
  • क्या महंगे सामान, सम्पत्ति, धन तथा और ज्यादा की इच्छा हमें समग्र बनाता है? अगर ये सत्य है तो हममें से ज्यादातर शांति, खुशी महसूस करते। वास्तविकता इससे कंही दूर है। वस्तुतः सादगी तथा इस ब्रहमाण्ड के बनाने वाले सर्वशक्तिमान से मेल हमें समग्र बनाता है।
  • इस ब्रहमाण्ड में कुछ भी स्वतंत्र, स्वयं की सत्ता से नही है बल्कि सब कुछ प्राणवान है उस परमब्रहम्म से। कितना सजीव सामंजस्य है अनंत समय से। हम भी उस ही सामंजस्य की इकाई हैं और प्राणवान हैं…इसलिए समग्र हैं।

समग्रता, सम्यक् स्वास्थ्य, तत्परता, कृतज्ञता

सम्यक् स्वास्थ्य

  • सामयिक स्वास्थ्य क्या है…केवल शारिरीक स्वास्थ्य? बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पहले है। विचारों पर ध्यान देना…ये प्रथम चरण है।
  • वर्षौ में जाना कि हम वो ही बन जाते हैं– जो हमारे विचार होते हैं। सकारात्मक विचार मानसिक विकास और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं।
  • संज्ञान लें कि — सादगी, मानसिक शांति से सम्यक स्वास्थ्य को प्राप्त किया जाता है। इसलिए इस तरह से जीवन व्यतीत करें।
  • मानसिक शक्ति जो हमें नकारात्मक अनुभवों से बाहर ले आऐ, स्वयं से शांति स्थापित करने की स्थिति ही सम्यक् स्वास्थ्य है।
  • सादगी, अपनी सीमा में रहना ,जीवन के महत्वपूर्ण कार्योंं में एकाग्रता को बढाता है। कम मानसिक भटकाव अधिक सम्यक् स्वास्थ्य।
  • सम्यक स्वस्थ्य दिमाग, शरीर से ज्यादा ह्रदय में वास करता है। जब ह्रदय नकारात्मक, जलन, दुर्भावनाओं, से भरा न हो और केवल प्रेम से ओतप्रोत हो तब हम सम्यक स्वस्थ हैं।

समग्रता, सम्यक् स्वास्थ्य, तत्परता, कृतज्ञता

तत्परता

  • किसी भी वस्तु स्थिति को स्वीकार किये बिना आप आगे नहीं बढ़ सकतेI यदि ऐसा नही करते तो आप वर्तमान में नहीं बने रह सकते। मानसिक रूप से तैयार रहिए।
  • काफी मुश्किलों के बाद ये सीखा…जीवन में कुछ बढ़त प्राप्त करने के लिए आपको अपनी वर्तमान स्थिति को हृदय से स्वीकार करना आवश्यक है चाहे स्थिति आपके पक्ष में भी ना हो। ये स्वीकार्य ही सुधार का रास्ता खोलेगा
  • बहुत बार एक कठिन परिस्थिति स्वीकार करने पर भी परिणाम निराशाजनक ही दिखता है .क्योंकि हमने पूरे हृदय से परिस्थिति को स्वीकारा नही केवल सतही तरीके से स्वीकारा। परिणाम बदलना हो तो हृदय से स्वीकारें।
  • अपने जीवन की चुनौतियों को हृदय से स्वीकार करते ही आगे बढ़ने का रास्ता स्वंय ही उजागर हो जाएगा।

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कृतज्ञता

  • कृतज्ञ होना उनके प्रति जो आपको सदैव हर स्थिति में सहायता करते हैं, ये महत्वपूर्ण है। ये आपको प्रसन्न, शांत, सुंदर बनाता है।
  • ईश्वर की सुंदर योजना में हम स्वयं एक ब्रह्मांड हैं, इस अद्भुत प्रकृति के लिए कृतज्ञ रहना उत्रोतर वृद्धि का चिन्ह है।
  • प्रक्रति ने ही सब नदियाँ, पर्वत, वन बनाये हैं और हमने उनके प्रति कम प्रेम और कृतज्ञता दिखाई है जिसका परिणाम हम सब जानते हैं। ईश्वर की कृति के प्रति आभारी रहें।

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