पिछले हफ्ते ही मेरी भेंट लगभग बाईस वर्षों बाद मेरे एक मित्र से हुई लेकिन वो एक परेशानी में दिखा।
मैं – क्या बात है, क्यों दुःखी दिख रहे हो। इतने साल बाद मिले पर दुःखी और परेशान?
मित्र – क्योंकि मैं सेवानिवृत्त हो गया हूँ, परेशान हूँ कि अब समय कैसे कटेगा, क्या करूंगा, कौन मेरा ख्याल रखेगा। मुझे तो नौकरी के सिवा कुछ आता ही नहीं। पत्नी से तो बहुत ठीक नही बनती, अब हर दिन एक मरण जैसा है।
मित्रों ये अब एक सामान्य सामाजिक स्थिति बन चुकी है। वर्षों कार्यरत रहने के बाद हमारे समाज के बहुत सारे साथी अब केवल अलग थलग जीवन व्यतीत कर रहे हैं या मजबूरीयों के साथ जी रहे हैं। प्रबुद्घ होते हुऐ भी इस अलगाव का जीवन, क्यों? जरा गहराई और बारीकी से देखते हैं….आईए
1 .क्या कुछ और जो अच्छा लगता है करना सीखा या समय नही है ये ही कहते रहे।
2. अपने को अनुभव के आधार पर बडा किया या केवल पदों पर बढाया। बढना अच्छा है पर अपने को समझना आवश्यक है।
3. नौकरी को ही केवल काम समझा घर के काम को नहीं।
4. अगर आप विवाहित जीवन में थे तो नौकरी के अलावा घर के कार्य में कभी गर्व का अनुभव किया या केवल उसे दूसरी श्रेणी का समझा।
5. ये तो ज्ञात ही था कि एक दिन सेवाएं समाप्त होंगी और आप निवृत हो जाएंगे तो वर्षों पहले ही क्यों नहीं योजना बनायी कि आप निवर्तन के बाद क्या और कैसे करेंगे और कैसे वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे जो अति आवश्यक है।
6. समय तो बीत ही जाता है उसे शांति से अपना बनाना अच्छा और आवश्यक भी है। कैसे?
यही समझना है निवृत होने के कम से कम दस वर्ष पूर्व योजना बद्ध रूप से आगे बढना होगा।
7. समय को उत्पादक रूप से प्रयोग करने की कोशिश करनी होगी।
8. प्रबुद्घ हैं तो इसे कम न होने दें बल्कि साझा कर अपने चारों तरफ नजर रखते हुए सामाजिक कल्याण की भावना से कुछ भी कार्य हाथ में लें।
9. स्वास्थ्योन्मुख रहिए और बन्धुओं को भी रखें। जीवन का अंत कभी नहीं होता इसलिए पूरक बनें न कि किसी की जिम्मेदारी। चलित रहिए जड़ नही।
10 . आप जो भी कर सकते हैं करिए उदाहरणार्थ के पढाना, वाद, लेखन, चित्रकला, पर्यटन, पर्यावरण सुरक्षा पर कार्य, मकानों, मशीनों की देखरेख पर सलाह, अनगिनत काम हैं जो आप कर सकते हैं।
11. ये देखने में आया है कि जिन लोगों को उनके संगठनों, कम्पनियों से बहुत सुविधाएं मिलती रही हों तो वे अपने काम स्वयं न करने की आदत बना चुके हैं। सेवानिवृत्त होते ही सभी सुविधाएं खत्म हो जाने पर मानसिक रूप से एकदम बदलाव नहीं आता। बीमारियां घर कर ही लेती हैं। समय से पहले आदत को बदलीए। अपने काम स्वयं करिए।
सेवानिवृत्त हो जाना जीवननिवृत होना नहीं है बल्कि एक नवीनीकरण है जीवन का।
– शरद कुमार गोयल